बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्र - भारतीय शिक्षा प्रणाली का विकास एवं चुनौतियाँ बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्र - भारतीय शिक्षा प्रणाली का विकास एवं चुनौतियाँसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
महत्वपूर्ण तथ्य
1914 ई. प्रथम विश्व युद्ध आरम्भ हुआ था जिससे शैक्षिक क्रियाकलाप रोक दिये गये थे।
श्री आशुतोष मुखर्जी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय की समस्याओं की ओर ध्यान आकृष्ट किया।
सरकार ने कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर विभाग की क्षमता की जाँच करने हेतु 14 सितम्बर, 1917 ई. को कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग की नियुक्ति की थी।
इस आयोग को सैडलर आयोग भी कहा जाता है। आयोग की जाँच का विषय था कलकत्ता विश्वविद्यालय की स्थिति एवं आवश्यकताओं की जाँच करना और उसके द्वारा उपस्थित किये जाने वाले प्रश्न पर रचनात्मक नीति का सुझाव देना।
आयोग ने 17 माह के प्रयास के बाद 1919 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।
इस रिपोर्ट में माध्यमिक एवं विश्वविद्यालय शिक्षा का पूर्ण विवेचन किया है।
प्रत्येक प्रान्त में माध्यमिक और इण्टरमीडिएट शिक्षा परिषद की स्थापना की जाए।
प्रोफेसरों एवं रीडरों की नियुक्ति एक समिति द्वारा की जाए परीक्षा पाठ्यक्रम, उपाधि वितरण और अनुसंधान आदि।
एकेडेमिक कार्यों को करने के लिए एकेडमिक समिति की स्थापना की गई।
आयोग ने प्रत्येक प्रान्त में माध्यमिक शिक्षा परिषदों की स्थापना करने और उन्हें कॉलेजों को मान्यता देने का सुझाव देकर माध्यमिक शिक्षा परिषद को सुदृढ़ बनाने का प्रयास किया।
आयोग द्वारा विश्वविद्यालयों में व्यावसायिक शिक्षा, इन्जीनियरिंग शिक्षा, चिकित्सा कानून, कृषि की शिक्षा विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध की।
आयोग ने विश्वविद्यालयों के छात्रों के स्वास्थ्य एवं शारीरिक विकास हेतु डायरेक्टर ऑफ फिजिकल ट्रेनिंग की नियुक्ति करने का सुझाव दिया था।
सन् 1920 में पूर्वी बंगाल में ढाका विश्वविद्यालय स्थापित कर दिया गया। इसी वर्ष मैसूर, पटना, बनारस, अलीगढ़, लखनऊ एवं उस्मानियाँ विश्वविद्यालय भी स्थापित किये गये।
ब्रिटिश संसद ने भारत सरकार अधिनियम 1919 ई. में पारित करके 1921 ई. में इसे क्रियान्वित कर भारत में द्वैध शासन प्रणाली लागू की थी।
8 नवम्बर, 1927 ई. में साइमन कमीशन की स्थापना हुई।
साइमन कमीशन का भारतीय जनता द्वारा विरोध किया गया।
साइमन कमीशन ने एक सहायक समिति की नियुक्ति की। इस समिति की नियुक्ति सर फिलिप हींग ने की। इसे हींग समिति भी कहते हैं।
ऐबट एवं वुड समिति की नियुक्ति 1936 में की गई थी।
समिति का मुख्य उद्देश्य था कि क्या प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में किसी प्रकार की व्यावसायिक शिक्षा अथवा क्रियात्मक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और यदि ऐसा हो सकता है तो इसकी प्रकृति और मात्रा क्या होनी चाहिए।
हींग समिति के अनुसार प्राथमिक स्तर पर "अपव्यय - अवरोधन" की समस्या है।
" अपव्यय का अर्थ प्राथमिक शिक्षा पूर्ण होने से पूर्व ही बालकों को किसी कक्षा से हटा लेना अपव्यय है।
एक बालक का एक ही कक्षा में एक वर्ष से अधिक रहना अवरोधन कहलाता है।
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